बिनती सुनी स्याम सुजान -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राम रामकली


बिनती सुनी स्याम सुजान।
अतिहिं मुख अपमान कीन्हौ, दृढ़ न इनतैं आन।।
अब करौं दुख दूरि इनकौं, भज्यौ तजि अभिमान।।
बिरह-दंद निवारि डारौं, अधर-रस दै पान।।
मनहिं मन यह सुख करत हरि, भए कृपानिधान।।
सूर निस्चय भजीं मोकौं, नहीं जानतिं आन।।1026।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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