विधना यहै लिख्यौ संजोग -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग केदारौ


  
विधना यहै लिख्यौ संजोग।
कहाँ तै मधुपुरी आए, तज्यौ माखन भोग।।
कहाँ वै ब्रज के सखा सब, कहाँ मथुरा लोग।
देवकी वसुदेव सुत सुनि, जननि करिहै सोग।।
रोहिनी माता कृपा करि, उछँग लेती रोग।
‘सूर’ प्रभु मुख यह बचन कहि, लिखि पठायौ जोग।। 3441।।

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