महाभारत सभा पर्व के ‘द्यूत पर्व’ के अंतर्गत अध्याय 56 के अनुसार विदुर और धृतराष्ट्र की बातचीत का वर्णन इस प्रकार है[1]-
विषय सूची
धृतराष्ट्र द्वारा विदुर को आज्ञा
वैशम्पायनजी कहते हैं - जनमेजय! अपने पुत्र दुर्योधन का मत जानकर राजा धृतराष्ट्र ने दैव को दुस्तर माना और यह कार्य किया। विद्वानों में श्रेष्ठ विदुर ने धृतराष्ट्र वह अन्यायपूर्ण आदेश सुनकर भाई की उस बात का अभिनन्दन नहीं किया और इस प्रकार कहा। विदुर बोल-महाराज! मैं आपके इस आदेश का अभिनन्दन नहीं करता, आप ऐसा काम मत कीजिये। इससे मुझे समस्त कुल के विनाश का भय है। नरेन्द्र! पुत्रों में भेद होने पर निश्चय ही आपको कलह का सामना करना पड़ेगा। इस जूए के कारण मुझे भी ऐसी आशंका हो रही है। धृतराष्ट्र ने कहा-विदुर! यदि दैव प्रतिकूल न हो, तो मुझे कलह भी कष्ट नहीं दे सकेगा। विधाता का बनाया हुआ यह सम्पूर्ण जगत् दैव के अधीन होकर ही चेष्टा कर रहा है, स्वतन्त्र नहीं है। इसलिये विदुर! तुम मेरी आज्ञासे आज राजा युधिष्ठिर के पास जाकर उन दुर्द्धर्ष कुन्तीकुमार युधिष्ठिर को यहाँ शीघ्र बुला ले आओ।[1]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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राजसूय पर्व
श्रीकृष्ण की आज्ञा से युधिष्ठिर का राजसूय यज्ञ की दीक्षा लेना
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अर्घाभिहरण पर्व
राजसूय यज्ञ में ब्राह्मणों तथा राजाओं का समागम
| भीष्म की अनुमति से श्रीकृष्ण की अग्रपूजा
| शिशुपाल के आक्षेपपूर्ण वचन
| युधिष्ठिर का शिशुपाल को समझाना
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| कालिय-मर्दन एवं धेनुकासुर वध
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| श्रीकृष्ण और बलराम का विद्याभ्यास
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शिशुपाल वध पर्व
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| दुर्योधन का धृतराष्ट्र को उकसाना
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| जुए में शकुनि के छल से युधिष्ठिर की हार
| धृतराष्ट्र को विदुर की चेतावनी
| विदुर द्वारा जुए का घोर विरोध
| दुर्योधन का विदुर को फटकारना और विदुर का उसे चेतावनी देना
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| विदुर का दुर्योधन को फटकारना
| दु:शासन का सभा में द्रौपदी को केश पकड़कर घसीटकर लाना
| सभासदों से द्रौपदी का प्रश्न
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| द्रौपदी का चेतावनी युक्त विलाप एवं भीष्म का वचन
| दुर्योधन के छल-कपटयुक्त वचन और भीम का रोषपूर्ण उद्गार
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| धृतराष्ट्र का युधिष्ठिर को सारा धन लौटाकर इन्द्रप्रस्थ जाने का आदेश
अनुद्यूत पर्व
दुर्योधन का धृतराष्ट्र से पुन: द्युतक्रीडा के लिए पाण्डवों को बुलाने का अनुरोध
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| धृतराष्ट्र की आज्ञा से युधिष्ठिर का पुन: जुआ खेलना और हारना
| दु:शासन द्वारा पाण्डवों का उपहास
| भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव की भीषण प्रतिज्ञा
| विदुर का पाण्डवों को धर्मपूर्वक रहने का उपदेश देना
| द्रौपदी का कुन्ती से विदा लेना
| कुन्ती का विलाप एवं नगर के नर-नारियों का शोकातुर होना
| वनगमन के समय पाण्डवों की चेष्टा
| प्रजाजनों की शोकातुरता के विषय में धृतराष्ट्र-विदुर का संवाद
| शरणागत कौरवों को द्रोणाचार्य का आश्वासन
| धृतराष्ट्र की चिन्ता और उनका संजय के साथ वार्तालाप
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