वारौं हौं वे कर जिन हरि -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग गौरी



वारौं हौं वे कर जिन हरि कौ बदन छुयौ।
वारौं रसना सो जिहिं बोल्‍यौ है तुकारि।
वारौं ऐसी रिस जो करति सिसु बारे पर।
ऐसौ सुत कौन पायौ मोहन मुरारि।
ऐसी निरमोही माई महरि जसोदा भई
बाँध्‍यौ है गोपाल लाल बाहँनि पसारि।
कुलिसहुँ तैं कठिन छतिया चितै री तेरी
अजहूँ द्रवति जो न देखति दुखारि।
कौन जानै कौन पुन्‍य प्रगटे हैं तेरै आनि।
जाकौं दरसन काज जपै मुख-चारि।
केतिक गोरस हानि जाकौ सूर तोरै कानि
डारौं तन स्‍याम रोम-रोम पर वारि।।362।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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