वह निधरक मैं सकुचि गई।
तब यह कह्यौ जाहि घर राधा, मैं झूठी, तू साँच भई।।
त्यौरी भौंहनि मो तन चितवै, नैंकु रहौं तौ करै खई।
काम-भँडार लूटि नीकै करि, निदरि गई, मैं चकृत भई।।
धर धौं जाइ कहा अब कैहै, अब कछु औरै बुद्धि नई।
सूर स्याम-सँग अँग रँग राची, मन मानौ सुख लूटि लई।।1722।।