वह तौ नित नूतन रति जोरे -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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वह तौ नित नूतन रति जोरे ।
चित चितवन हि मैं सो चोरे ।।
अति चतुर चितवन चित चुरावति चलत ध्रुव धीरज हरै ।
फिरि चमक चोप लगाइ चचल, नेह नित आतुर करै ।।
वा भौह कौ छवि निरखि नैननि, सु को जु न व्रत तै टरै ।
इहिं भाँति चतुर सुजान समधिनि सकति रति सब सौ करै ।।

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