वनी मोतिनि की माल मनोहर।
सोभित स्याम-सुभग-उर-ऊपर, मनु गिरि तै सुरसरी धँसी धर।।
तट भुज दड, भौर भृगु रेखा, चंदनचित्र तरंग जु सुंदर।
मनि की किरन मीन, कुंडल छवि मकर, मिलन आए त्यागे सर।।
जग्युपवीत विचित्र ‘सूर’ सुनि, मध्य-धार-धारा जु बनी वर।
संख चक्र गदा पद्म पानि मनु कमल कूल हंसनि कीन्हे घर।।1758।।