वचन (महाभारत संदर्भ) 2

  • अतिवाद: श्रियो वध:।[1]

अतिकठोर वचन बोलना श्री का वध करना है। (लक्ष्मी का नाश करता है)

  • वाचा युद्धप्रवृत्तानां वाचैव प्रतियोधनम्।[2]

वचन का उत्तर वचन से ही दिया जाना चाहिये।

  • यच्छ्रेय: स्यात्रिश्चितं ब्रूहि।[3]

जो निश्चय ही कल्याण कारक हो वह बोलो।

  • स्वधर्मस्याविरोधेन हितं व्याहर।[4]

अपने धर्म का विरोध भी ना हो और हितकर भी हो ऐसा बोलो।

  • बह्वबद्धमकर्णीयं को हि ब्रूयाज्जिजीविषु:।[5]

कौन जीने का इच्छुक मनुष्य न सुनने योग्य निराधार वचन बोलेगा?

  • अर्थं ब्रूयांत चासत्सु।[6]

अच्छी बातें तो बोलें परंतु दुर्जनों से नहीं।

  • दुर्लभो हि सुहृच्छ्रोता दुर्लभश्च हित: सुहृत्।[7]

हित की बात सुनने वाला और हित करने वाला सुहृद् दुर्लभ है।

  • अलमन्यैरुपालम्भै: कीर्तितैश्च व्यतिक्रमै:।[8]

औरों को उलाहने देना तथा उनके अपराधों की चर्चा करना छोड़ दो।

  • वक्तव्यमविक्षिप्तेन चेतसा।[9]

एकाग्र चित्त से बोलना चाहिये।

  • असदुच्चैरपि प्रोक्त: शब्द: समुपशाम्यति।[10]

अनुचित बात जोर से बोली जाये तो भी शांत हो जाती है।

  • अव्याहृतं व्याहृताच्छ्रेय आहु:।[11]

अधिक बोलने से अधिक अच्छा है अल्प बोलना।

  • अग्राह्यमनिबद्धं च वाचा सम्परिवर्जयेत्।[12]

मानने के अयोग्य और अनर्गल वाणी को त्याग दें।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. उद्योगपर्व महाभारत 40.4
  2. भीष्मपर्व महाभारत 1.28
  3. भीष्मपर्व महाभारत 26.8
  4. भीष्मपर्व महाभारत 107.24
  5. कर्णपर्व महाभारत 39.7
  6. शांतिपर्व महाभारत 70.6
  7. शांतिपर्व महाभारत 168.4
  8. शांतिपर्व महाभारत 181.20
  9. शांतिपर्व महाभारत 215.11
  10. शांतिपर्व महाभारत 287.32
  11. शांतिपर्व महाभारत 299.38
  12. अनुशासनपर्व महाभारत 162.9

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