लोचन हरत अंबुज मान -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग सोरठ


लोचन हरत अंबुज मान।
चकित मनमथ सरन चाहत, धनुष तजि निज बान।।
चिकुर कोमल कुटिल राजत, रुचिर बिमल कपोल।
नील-नलिन-सुगंध ज्यौ, रस थकित मधुकर लोल।।
स्याम उर पर परम सुंदर, सजल मोतिनि हार।
मनो मरकतसैल, तै, बहि चली सुरसरि धार।।
'सूर' कटि पटपीत राजत, सुभग छबि नंदलाल।
मनौ कनक लता-अबलि-बिच, तरल बिटप तमाल।।2220।।

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