लोचन भए पखेरू माई -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग जैतश्री


लोचन भए पखेरू माई।
लुब्धे स्याम रूप चारा कौ, अलक फद परे जाई।।
मोर मुकुट टाटी मानौ, यह बैठनि ललित त्रिभंग।
चितवनि लकुट, लास लटकनि पिय, काँपा अलक तरंग।।
दौरि गहनि मुख-मृदु-मुसुकावनि, लोभ पीजरा डारे।
'सूरदास' मन व्याध हमारौ, गृह बन तै जु बिसारे।।2272।।

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