लाल हौं वारी तेरे मुख पर।
कुटिल अलक, मोहनि मन बिहँसनि, भृकुटी बिकट ललित नैननि पर।
दमकति-दूध दंतुलिया बिहँसत, मनु सीपज घर कियौ बारिज पर।
लघु-लघु लट सिर घूँधरवारी, लटकन लटकि रह्यौ माथैं पर।
यह उपमा कापै कहि आवै, कछुक कहौं सकुचित हौं जिय पर।
नव-तन-चंद्र-रेख-मधि राजत, सुरगुरु-सुक्र-उदोत परसपर।
लोचन लोल कपोल ललित अति, नासा कौ मुकता रदछद पर।
सूर कहा न्यौछावर करियै अपने लाल ललित लरखर पर।।93।।