लालहिं जगाइ बलि गई माता।
निरखि मुख-चंद छबि, मुदित भई मनहिं मन, कहत आधैं वचन भयौ प्राता।
नैन अलसात अति, बार बार जम्हात, कंठ लागि जात, हरषात गाता।
बदन पोंछियौ जल जमुन सौं धोइ कै, कह्यौ मुसुकाइ कछु खाहु ताता।
दूध औट्यौ आनि, अधिक मिसिरी सानि, लेहु माखन पानि प्रान-दाता।
सूर प्रभु कियौ भोजन विविध भाँति सौं, पियौ पय मोद करि घूँट साता।।440।।