लालन, वारी या मुख ऊपर -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग जैतश्री



लालन, वारी या मुख ऊपर।
माई मेरिहि दीठि न लागै, तातैं मसि बिंदा दियौ भ्रू पर।
सरबस मैं पहिलैं ही वारयौ, नान्हीं-नान्हीं दँतुली दू पर।
अब कहा करौं निछावरि, सूरज सोचति अपनैं लालन जू पर।।92।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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