लाज ओट यह दूरि करौ।
जोइ मैं कहौं करौ तुम सोई,सकुच बापुरिहिं कहा करौ।।
जल तैं तीर आइ कर जोरहु, मैं देखौं तुम बिनय करौ।
पूरन ब्रत अब भयौ तुम्हारौ, गुरुजन-संका दूरि करौ।।
अब अंतर मोसौं जनि राखहु, बार-बार हठ बृथा करौं।
सूर स्याम कहैं चीर देत हौं, मो आगैं सिंगार करौ।।790।।