ललिता कौ सुख दै गए स्याम।
आजु बसैंगे रैनि तिहारै, प्रानपियारी हौ तुम बाम।।
यह कहि कै अनतहि पगुधारे, बहु नायक के भेद अपार।
साँझ समय आवन कहिं आए, सौह बहुत करि नंदकुमार।।
वह बैठी मारग हरि जोवति, इक इक पल बीतत इक जाम।
'सूर' स्याम आवन की आसा, सेज सँवारति व्याकुल काम।।2478।।