लग लागन नहिं पावत स्याम।
तब इक भाव कियौ कछु ऐसौ, प्यारी-तन उपजायौ काम।।
मिस करि निकट आइ मुख हेरयौ, पीतांबर डारयौ सिर वारि।
यह छल करि मन हरयौ कन्हाई, काम-विबस कीन्हीं सुकुमारि।।
पुलकि अंग, अँगिया दरकानी, उर आनँद अंचल फहरात।
गागरि ताकि काँकरी मारै, उचटि उचटि लागति प्रिय-गात।।
मोहन मन मोहिनी लगाई, सखिनि संग पहुँची घर जाइ।
सूरदास प्रभु सौं मन अँटक्यौ, देह-गेह की सुधि बिसराइ।।1441।।