लगी मोहि राम खुमारी हो -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

Prev.png
राग मलार





लगी मोहि राम खुमारी हो ।। टेक ।।
रमझम बरसै मेहड़ा, भीजै तन सारी, हो ।
चहूँ दिस चमकै दामणी, गरजै घन भारी, हो ।
सतगुर भेद बताइया, खोली भरम किंवारी, हो ।
सबघट दीसै आतमा, सबहीं सूँ न्यारी, हो ।
दीपक जोऊँ ग्यायनका, चढूँ अगम अटारी, हो ।
मीरां दासी राम की, इमरत बलिहारी, हो ।।158।।[1]



Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. खुमारी = हलकी थकावट की वह दशा जो किसी नशे के उतरते समय आ जाती है। मेहडा = प्रेम का मेह ( ‘डा’ प्रत्यय ऊनार्थ वाचक है ) सारी = तमाम, सर्वांग। भीजै... हो = प्रेम सर्वांग में व्याप्त हो गया। ( देखो - ‘बरस्या बादल प्रेम का, भीजि गया सब अंग’ - कबीर)। भरम = भ्रम, भ्रांति, अज्ञान। दीपग = दीपक। जोऊँ = जलाऊँ। अगम = अगम्य स्थान की, ऊँची। इमरित = अमृत के लिए। बलिहारी = बलिहारी जाती हूँ।
    विशेष- आत्मदर्शन के पश्चात होने वाले आनंदमय, अनुभव की स्थित का वर्णन प्रेमवर्षा और उसके प्रभाव के रूपक द्वारा व्यक्त किया गया है। कबीर साहब ने इस विचित्र परमात्मा-प्रेम को 'रामरस' भी कहा जाता है। (देखो- 'कहै कबीर फाबी मतिवारी, पीवत रामरस लगी खुमारी'- कबीर)।

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः