लगा, किसीने लिया गोद में -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

श्रीराधा माधव लीला माधुरी

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तर्ज लावनी - ताल कहरवा


लगा, किसीने लिया गोदमें, हु‌आ सुकोमल तनका स्पर्श।
भरा सुधा-रस अङ्ग-‌अङ्गमें, मिटा खेद, छाया अति हर्ष॥
हर्षपूर्ण हो गया हृदय अति, रहीं बंद आँखें कुछ काल।
उठी गुदगुदी तन-मनमें, तब खुले नयन-‌अरविन्द विशाल॥
देखा बँधी हु‌ई अपने को प्रियतमके कोमल भुज-पाश।
देखा, देख रहे अपलक प्रिय, छाया अधरोंपर मृदु हास॥
हु‌आ अमित आनन्द परस्पर, विकसे हृदय-कुसुम तत्काल।
होने लगा प्रिया-प्रियतममें रसालाप अति दिव्य रसाल॥
बोले प्रियतम- ’भूल गयी तुम, आये थे हम दोनों साथ।
दोनों ही बैठे यमुना-तट लिये परस्पर कोमल हाथ॥
हु‌आ प्रेम-वैचित्त्य तुहें तब, जागा मन वियोगका जान।
हु‌आ विमुग्ध देख मैं अनुपम दिव्य प्रेमकी दशा महान॥
कूदा मैं भी साथ तुम्हारे, लिया अङ्कमें भुजा पसार।
मैंने तुमको प्रिये ! उसी क्षण, मिला दिव्य आनन्द अपार॥
रहा देखता निर्निमेष मैं प्यारी-मुख-सरोजकी ओर।
उमड़ा प्रेम-सुधा-रस-सागर, रहा कहीं भी ओर न छोर॥
हटा भाव वह पाकर मुझको, हु‌आ तुम्हें तब बाह्यजान।
महिमामयी! नहीं तुमको है किंचित्‌ निज महिमा का भान॥’

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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