लखन दल संग लै लंक धेरी -सूरदास

सूरसागर

नवम स्कन्ध

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राग मारू
लक्ष्मण-युद्धगमन


 
लखन दल संग लै लंक धेरी।
पृथ्वी भइ षष्ट अरु अष्ट‍ आकास भए, दिसि-बिदिस कोउ नहिं जात हेरी।
रीछ लंगूर किलकारि लागे करन, आन रघुनाथ की जाइ फेरी।
पाए गए टूटि, परी लूटि सब नगर मैं, सूर दरवान कह्यौ जाइ टेरी॥138॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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