रैनि जागि प्रीतिम कैं संग रंग भीनी -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग भैरव


रैनि जागि प्रीतिम कैं संग रंग भीनी।
प्रफुलित मुख-कंज, नैन-खंजरीट-मीन-मैन बिथुरि रहे चुरनि कच बदन ओप दीनी।।
नर आलस जँभाति, पुलकित अति पान खाति, मदमाती तन-सुधि नहिं सिथिलित भई बेनी।
माँग तैं मुकुतावलि टरि, अलक संग अरुझि रही, उरगिनि सतफन मानौ कंचुलि तजि दीनी।।
बिकसत ज्यौं चंप-कली भोर भऐं भवन चली लटपटात प्रेम घटा गज-गति गति लीन्ही।
आरित कौ करत नास, गिरिधर सुठि सुख की रासि, सूरदास-स्वामिनि-गुन-गन न जात चीन्ही।।1694।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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