रे मन जनम अकारथ खोइति -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग सोरठ




रे मन, जनम अकारथ खोइति।
हरि की भक्ति न कबहूँ कौन्‍हीं, उदर भरे, परि सोइसि।
निसि-दिन फिरत रहत सुँह बाए, अहमिति जनम बिगोइसि।
गोड़ पसारि पर्यौ दोउ नीकैं, अब कैसी कह होइसि।
काल-जमनि सौं आनि बनी है, देखि-देखि मुख रोइसि।
सूर स्‍याम दिनु कौन छुड़ावै, चले जाब भाई पोइसि।।333।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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