रे मन जग पर जानि उगायौ -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग काह्नरौ



रे मन, जग पर जानि उगायौ।
घन-मद कुल-मद तरुनि कै मद, नव-मद हरि बिसरायौ।
कलि-मल-हरन, कालिमा-टारन, रसना श्याम न गायौ।
रसमय जानि सुवा सेमर कों चोंच घालि पछितायो।
कर्म-धर्म, लील-जस हरि-गुन, इहि रस छाँव न आयौ।
सूरदास भगवंत-भजन बिनु, कहु कैसे सुख पायो। ॥ 58 ॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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