रे मन आपु कौं पहिचानि -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग सूहा बिलावल




रे मन, आपु कौं पहिचानि।
सब जनम तैं भ्रमत खोयौ, अजहूँ तौ कछु जानि।
ज्‍यौं मृगा कस्‍तूरि भूलै, सु तौ ताकैं पास।
भ्रमत हीं वह दौरि ढूँढ़ै, जबहिं पावै बास।
भरम ही बलवंत सब मैं, ईसहू कैं भाइ।
जब भगत भगवंत चीन्‍है, भरम मन तैं जाइ।
सलिल कौं सब रंग तजि कै, एक रंग मिलाइ।
सूर जो द्वै रंग त्‍यागे, यहै भक्त सुभाइ।।70।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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