रे पिय, लंका बनचर आयौ -सूरदास

सूरसागर

नवम स्कन्ध

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राग मारू


 
रे पिय, लंका बनचर आयौ।
करि परपंच हरी तैं सीता, कंचन-कोट ढहायौ।
तब तैं मूढ़ मरम नहिं जान्यौं, जब मैं कहि समुझायौ।
वेगि न मिलौ जानकी लै कै, रामचंद्र चढ़ि आयौ।
ऊँची धुजा देखि रथ ऊपर, लछिमन धनुष चढ़ायौ।
गहि पद सूरदास कहै भामिनि, राज बिभीषन पायौ॥119॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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