रुकमिनि देवी मंदिर आई ।
धूप दीप पूजा सामग्री, अली संग सब ल्याई ।।
रखवारी कौ बहुत महाभट, दीन्हे रुकम पठाई ।
ते सब सावधान भए चहुँ दिसि, पंछी तहाँ न जाई ।।
कुँवरि पूजि गौरी विनती करी, बर देउ जादवराई ।
मैं पूजा कीन्हो इहिं कारन, गौरी सुनि मुसकाई ।।
पाइ प्रसाद अंबिका मंदिर, रुकुमिनि बाहर आई ।
सुभट देखि सुंदरता मोहे, धरनि गिरे मुरझाई ।।
इहिं अंतर जादौपति आए, रुकमिनि रथ बैठाई ।
‘सूरज’ प्रभु पहुँचे दल अपनै, तब सुभटनि सुधि पाई ।। 4181 ।।