रीझे स्याम नागरि रुप -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग रामकली


रीझे स्याम नागरि-रुप।
तैमियै लट बगरि उर पर, स्रवत नीर अनूप।।
स्रवत जल कुच परति धारा, नहीं उपमा पार।
मनो उगिलत राहु अंमृत, कनक-गिरि पर धार।।
उरज परसत स्याम सुंदर, नागरी सरमाइ।
सूर-प्रभु तन-काम-ब्याकुल, किये मनहिं सुहाइ।।1166।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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