रिस लायक तापर रिस कीजै। इहि रिस तै प्रभु देही छीजै।।
तुम प्रभु हमसे सेवक जाकैं। ऐसौ कौन रहै तुम ताकैं।।
छिनहीं मैं ब्रज धोइ बहावैं। डूंगर कौ नहि नाउँ बचावैं।।
आपु छमा करियै दिवराई। हम करिहैं उनकी पहुनाई।।
यह सुनिकै हरषित मन कीन्हौं। आदर सहित पान कर दीन्हौ।।
प्रथमहिं देहु पहार बहाई। मेरी बलि ओहीं सब खाई।।
सूर इंद्र मेघनि समुभावत। हरषि चले धन आदर पावत।।929।।