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श्रीरासपंचाध्यायी -हनुमान प्रसाद पोद्दार
रासलीला-चिन्तन-2
भगवान के इन बातों को न जानने वाले लोग ही अपनी कुरुचि वश अपने-आप जिस रमण का अर्थ करते हैं वहीं अर्थ लगाकर भगवान इस ऊँचे-से-ऊँचे सर्वलीला मुकुट मणि इस रासलीला को अश्लील बताते हैं; और कोई-कोई बुद्धि लगाकर इसका जीवात्मा और परमात्मा का मिलन अर्थ लगातें है। वे वास्तविकता से दूर हट जाते हैं। परमहंसशिरोमणि श्रीशुकदेवजी सर्वलीला मुकुट मणि श्रीरासलीला का वर्णन करते समय ‘भगवान ने रमण की इच्छा की’ यह कहकर केवल यही नहीं दिखाया कि यह लौकिक काम-क्रीडा नहीं है बल्कि और भी विशेषता दिखाई। इससे यह समझ लेना चाहिये कि यह लौकिक तो है ही नहीं इसमें और विशेषता भी है। यहाँ एक दूसरी बात बताते हैं कि भगवान ने रमण की इच्छा की, रमण की इच्छा करते ही क्या हुआ कि पूर्व गगन में पूर्ण चन्द्रमा का उदय हो गया। वन-भूमि में शरद-ऋतु में, वसन्त-ऋतु का समागम हो गया, नाना प्रकार के पुष्प खिल उठे जिससे वनभूमि सौरभित और आलोकित हो उठी, मृदुल-मृदुल मलय पवन बहने लगा। नाना-भाव से वृन्दावन के देश-काल आदि भगवान की रमण की इच्छा के अनुकूल मूर्ति धारण करके प्रकट हो गये। यहाँ पर भगवान का परिपूर्ण ऐश्वर्य भी प्रकट है और फिर भगवान ने प्रेमवती गोपरमणियों को आमंत्रित किया, वेणुवादन करके और वह मुरली-ध्वनि चौरासी कोस व्रजमण्डल में परिपूर्ण हो गयी। किन्तु सुना केवल उन प्रेमवती व्रज गोपियों ने जिनको बुलाया था। इससे भगवान की अचिन्त्य महाशक्ति का परिचय मिलता है। गोपरमणियों के साथ भगवान की रमणमयी रासलीला यह भक्त वात्सल्य और प्रेमाधीनता रूप अनन्य असाधारण यश की ही अभिव्यक्ति करने वाली है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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