रास पंचाध्यायी -हनुमान प्रसाद पोद्दार पृ. 37

श्रीरासपंचाध्यायी -हनुमान प्रसाद पोद्दार

रासलीला-चिन्तन-2

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स्वर्गाश्रम (ऋषिकेश) में दिये गये प्रवचन


‘विबुध्य तां बालकमारिकाग्रहं चराचरात्माऽऽस निमीलितेक्षणः’[1]

यशोदा के साथ परम आदर के साथ लाड़-चाव के साथ सीधे सोये हुए शिशु ‘हरि’ हैं। वह मुग्धकारी-बाललीला सिन्धु में निमग्न रहने पर भी चराचर के अर्न्ययामी हैं। इस लिये यह बालघातिनी पूतना का आना उनसे अज्ञात नहीं रहा और कहते हैं कि दुर्जन का मुँह नहीं देखना चाहिये तो भगवान ने आँखें मीच ली। मुग्ध गोपाल बालक रूपी सर्वज्ञ भगवान की लीला के अनुसार तो वहाँ पर अज्ञता थी। छः वर्ष के बच्चे में ज्ञान नहीं रहना चाहिये। लेकिन उस अज्ञता की आड़ में महासर्वज्ञता छिपी और फिर वह प्रकट हो गयी और ऐसा उनकी बहुत-सी लीलाओं में हुआ। दो चीज एक साथ चली। एक तरफ लीला की अज्ञता और एक तरफ स्वरूप की सर्वज्ञता। ब्रह्मा जी आये श्रीकृष्ण की बाल लीला के माधुर्य का आस्वादन करने के लोभ से। ब्रह्मा जी का जो बच्चों को और बछड़ों को चुराकर ले जाना, उनको मोहित करना यह ब्रह्मा जी के लीला रसास्वादन की इच्छा थी। देखें और देखें। वहाँ पर पहले तो भगवान ढूँढने गए। वन में ढूँढा, इधर-उधर ढूँढा-अज्ञता और उसके बाद-

सर्व विधिकृतं कृष्णः सहसावजगाम ह’[2]

तुरन्त उनके यह बात ध्यान में आ गयी। पूर्ण सर्वज्ञता का विकास हो गया कि सारा काम ब्रह्मा का है, जान गये। यह किस बाल लीला में सर्वज्ञता प्रकट हुई? किसी अवतार में नहीं हुई। यहाँ दिग्दर्शन के लिये केवल दो चीज बतायी है। इनके तो ऐसी बहुत-बहुत हुई। लेकिन कृष्ण लीला में विशेष बात और जो मत्स्य, कूर्मादि में नहीं हुई, वह है सुप्रकाशिता। और लीला में क्या हुआ कि सभी ने उनको चाहा, उनसे चाहा। किसी ने भोग माँगा, किसी ने मोक्ष माँगा, किसी ने सिद्धि माँगी परन्तु इस लीला में विचित्रता है। व्रज में गोप, व्रज की गायें, व्रज की गोपियाँ- इनकी लीला देखने से यह मालूम होता है कि सभी श्रीकृष्ण की सेवा के लिये लालायित हैं। विशुद्ध अनुराग में माँगते नहीं हैं। सब देने को लालायित है। गाय कहती हैं कि हमारा जो अमृत को भी मात करने वाला दूध है; यह श्रीकृष्ण पीते रहें। गाय चाहती हैं कि हमारे स्तनों को आकर कन्हैया मुँह लगा ले। मुँह से पीलें तो हम निहाल हो जायँ। श्रीकृष्ण के लिये जिस गाय के दूध दुहा जाता है उसका दूध बढ़कर दूना, तिगुना हो जाता। अमृतत्त्व आ जाता। व्रज के पशु-पक्षी, वृक्ष-लता सब-के-सब किसी ने श्रीकृष्ण से कुछ नहीं चाहा और जिसके पास जो था उसे श्रीकृष्ण के आनन्दवर्धन के लिये प्रस्तुत किया था।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. श्रीमद्भा. 10।6।8
  2. श्रीमद्भा. 10।13।17

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