रास पंचाध्यायी -हनुमान प्रसाद पोद्दार पृ. 32

श्रीरासपंचाध्यायी -हनुमान प्रसाद पोद्दार

रासलीला-चिन्तन-2

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स्वर्गाश्रम (ऋषिकेश) में दिये गये प्रवचन

यहाँ बड़ी सुन्दर बात है कि मत्स्य, कूर्मादि लीला में क्या भेद दिखाते हैं कि सब मूर्तियों में भगवान की जो वशीकरण शक्ति है उसका विकास है; परन्तु सर्ववशीकारत्व का विकास नहीं है। क्यों? तो कहते हैं कि उन मूर्तियों में भगवान ने दूसरे सबको निजवश में किया और अपने किसी के वश में नहीं हुए। औरों को अपने वश में किया और स्वयं वशीभूत नहीं हुए। आत्मपर्यन्त - अपने को भी वश में करने से जो सर्ववशीकारत्व शक्ति की सिद्धि होती है वह उनमें नहीं हुई।

भगवान की एक मात्र श्रीकृष्ण लीला में ही ऐसा हुआ। माँ यशोदा के बन्धन में बद्ध होकर ‘दामोदर’ नाम से प्रसिद्ध इसी अवतार में हुए और कहीं नहीं हुए। कहीं भी पेट में रस्सी बँधवाकर दामोदन बने हों-अपने-आपको किसी के वश में कर दें ऐसा कहीं नहीं हुआ और खेल ही खेल में-एक दिन की बात है कि इनमें आपस में होड़ लगी कि जो हारे वह घोड़ा बने। तो इनको हरावे कौन? भगवान में सर्ववशीकारत्व शक्ति का विकास है। स्वयं हारना चाहें तो हारें। तो हार गये। हार गये तो श्रीदाम ने इनको घोड़ा बनाया। ये श्रीदाम के घोड़े बने और श्रीदाम इन पर सवार हो गये और ये ले गये वंशीवट तक। इसी अवतार में मानिनी श्रीराधा के चरणों की साधना की - ‘देहि में पदपल्लवमुदारम्’

अतएव इस प्रकार भगवान ने आत्मपर्यन्त अपने-आपको सर्ववशीकारत्व शक्ति के द्वारा वश में किया हो ऐसा कहीं नहीं किया। यहीं किया और यह चीज बड़ी कठिन। विचार करने पर मालूम होता है कि दूसरे को वश में रखने की अपेक्षा अपने को वश में करना कठिन है। कोई अच्छा विद्वान, बुद्धिमान, बलवान आदमी यह कभी कर नहीं सकता कि अपने को वश में करा दे। शक्तिमान व्यक्ति मात्र हीन शक्ति को तो अपने वश में करना चाहता है और कर सकता है। परन्तु स्वयं शक्तिमान होकर भी शक्तिहीन व्यक्ति के वश में हो जाय, ऐसे श्रीकृष्ण ही हैं। श्रीदाम क्या शक्ति, यशोदा में क्या शक्ति, राधिका में क्या शक्ति, सारी शक्ति तो इनकी परन्तु उनके वश में हो गये। यह सर्ववशीकारत्व ऐश्वर्य का प्रकाश श्रीकृष्ण में ही हुआ और कहीं हुआ नहीं। ‘ईश्वरः परमः कृष्णः सच्चिदानन्द विग्रहः’[1] तो यह भगवान हैं और सब तो ईश्वर हैं। यह परम ईश्वर हैं क्योंकि इसमें यह अपने को भी दूसरे के वश में रखने में समर्थ हैं। अपने को दूसरे के वश में कर दे शक्तिमान यह उस शक्तिमान की बड़ी सामर्थ्य है। मामूली बात नहीं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ब्रह्म संहिता

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