रास पंचाध्यायी -हनुमान प्रसाद पोद्दार पृ. 27

श्रीरासपंचाध्यायी -हनुमान प्रसाद पोद्दार

रासलीला-चिन्तन-2

Prev.png
स्वर्गाश्रम (ऋषिकेश) में दिये गये प्रवचन

अब श्रीभगवान की जो दूसरी अचिन्त्य शक्ति है उसका नाम ‘वीर्य’ है। जगत में भी हम देखते हैं कि मणि, मन्त्र, महौषधि इत्यादि के द्वारा विविध आश्चर्यमय कार्य होते हैं। चन्द्रकान्त मणि अगर पास है तो अग्नि की दाहिका शक्ति हट जाती है। इस प्रकार मणियों से, मन्त्रों से, महौषधियों से काम होते हैं। जब मणि, मन्त्रों में इतनी शक्ति है तो जो समस्त वस्तुओं के सृष्टिकर्ता हैं; इन सारी वस्तुओं के जो निर्माता हैं उन भगवान के अचिन्त्य शक्ति के सम्बन्ध में हम अनुमान कर सकते हैं। भगवान की लीला कथा पर विचार करते समय यह मानना चाहिये कि भगवान अचिन्त्य शक्ति हैं। उनकी शक्ति की कोई सीमा नहीं है। श्रीकृष्ण की लीला में पूतना वध, शकटभंजन, गोवर्धन-धारण इत्यादि उनकी अचिन्त्य महाशक्ति का ही परिचय देते हैं। जो भगवान के अचिन्त्यशक्ति में अविश्वास करते हैं वे ही लोग भगवान की लीला को कोई रूपक बताते हैं, कोई प्रक्षिप्त बताते हैं परन्तु भगवान की कृपा से और महासौभाग्यवश जिनको भगवान की अचिन्त्य शक्ति में विश्वास है वे ही लोग लीला कथा पर विचार करके परम आनन्द सिन्धु में निमग्न हो सकते हैं। अविश्वासी लोग नहीं।

तो कहते हैं कि अनन्त कल्याणगुण-समुद्र भगवान के कायिक, वाचिक, मानसिक जितने भी लीला कार्य हैं वे सब-के-सब जगत के लिये परम कल्याणकारी हैं। उनकी कोई लीला प्रारम्भ में देखने पर अहितकर दीखने पर भी परिणाम में कल्याणकारी ही होती है। श्रीभगवान का पूतना, अघासुर इत्यादि का वध प्रत्यक्ष दीखता है कि ये दण्ड विधान हैं परन्तु हुआ क्या? सदा के लिये उनको संसार से मुक्ति प्राप्त हो गयी। परमकल्याण हो गया। दीखा उनका वध, उन्हें भी मालूम हुआ कि हमें भगवान ने मारा परन्तु उनका अशेष कल्याण हो गया, सदा के लिये मुक्त हो गए। तो भगवान की कोई भी कायिक, मानसिक लीला देखने में चाहे कैसी भी मालूम हो वह है कल्याणकारी। यह है भगवान का यश।

पहले ‘ऐश्वर्य’ आया फिर ‘वीर्य’ आया अब ‘यश’ और भगवान का धाम भगवान के पार्षद, भगवान की लीला, भगवान का श्रीविग्रह यह सभी महान सम्पत्ति से परिपूर्ण हैं। यह जो महान सम्पद है इसी का नाम ‘श्री’ है। भगवान की सर्वज्ञता और स्वप्रकाशता इसका नाम ‘ज्ञान’ है। और सब प्रकार की मायिक वस्तुओं में भगवान की नित्य सहज अनासक्ति यही ‘वैराग्य’ है। यह जो छः महाशक्तियाँ हैं इन्हीं का नाम ‘भग’ है। सच्चिदानन्दघन विग्रह भगवान में यह महाशक्तियाँ नित्य स्वरूपगत अवस्थान करती हैं इसीलिये इनका नाम ‘भगवान’ है। यह ऐश्वर्यादि छः प्रकार की महाशक्तियों के घर या निकेतन हैं। सच्चिदानन्दमय भगवान एक होने पर भी इनकी अनन्त लीला होती है। इसीलिये श्रुतियाँ कहती हैं ‘एकोऽपि सन् बहुधा यो विभाति’ - एक ही भगवान बहुत रूप होकर लीला करते हैं।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

रास पंचाध्यायी -हनुमान प्रसाद पोद्दार
क्रमांक पाठ का नाम पृष्ठ संख्या

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः