रास पंचाध्यायी -हनुमान प्रसाद पोद्दार पृ. 26

श्रीरासपंचाध्यायी -हनुमान प्रसाद पोद्दार

रासलीला-चिन्तन-2

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स्वर्गाश्रम (ऋषिकेश) में दिये गये प्रवचन


तद्ब्रह्म तत् परं धाम तद्ध्येयं मोक्षकांक्षिभिः।
श्रुतिवाक्योदितं सूक्ष्मं तद् विष्णोः परमं पद्म्।।
तदेव भगवद्वाच्यं स्वरूपं परमात्मनः।
वाचको भगवच्छब्दस्तस्याद्य स्याक्षयात्मनः।।[1]

वेद के वचनों में अव्यक्त, अजर, अचिन्त्य, अज, अक्षय, अनिर्देश्य, प्राकृतरूपविहीन प्राकृत-कर-चरणदिविवर्जित, सर्वशक्तिमान, सर्वगत, नित्य, सर्वकारण, अकारण, सर्वव्यापी, परम, महत और सर्व प्रकाशक वस्तु का जिससे उद्देश्य पाया जाता है और तत्त्वज्ञ व्यक्ति जिसको प्रत्यक्ष करते हैं वही वस्तु ब्रह्म है। अर्थात परतत्त्व सर्वापेक्षा वृहत और स्वप्रकाश है। मोक्ष की आकांक्षा करने वाले व्यक्ति इसी वस्तु का सर्वदा ध्यान किया करते हैं। परमात्मा का जो इस प्रकार का स्वरूप है, वही भगवत शब्द वाच्य है और उसी को आद्य अक्षर स्वरूप भगवत शब्द के द्वारा कहा जाता है। इस प्रकार भगवत शब्द वाच्य परमात्मा के सभी वस्तु के स्वरूप का निर्देश करने के बाद भगवत शब्द का अर्थ करते हैं विष्णु पुराण में। कुछ थोड़ा पाठ भेद है। किसी-किसी में ‘वीर्यस्य’ की जगह ‘धर्मस्य’ पाठ मिलता है।

ज्ञानशक्ति बलैश्वर्य वीर्यतेजांस्यशेषतः।
भगवच्छब्दवाच्यानि विना हेयैर्गुणादिभिः।।[2]

परिपूर्ण ऐश्वर्य, वीर्य, यश, श्री, ज्ञान और वैराग्य- ये छः प्रकार की महाशक्तियों का नाम ‘भग’ है। भगवान प्राकृत गुण सम्बन्ध विहीन हैं। परिपूर्ण ज्ञानशक्ति, ऐश्वर्य, बल, वीर्य और तेज ये भगवत शब्द वाच्य हैं। इससे यह समझ में आता है कि ऐश्वर्यादि षडविध महाशक्ति समन्वित जो सच्चिदानन्दघन विग्रह है वह भगवान है। उन भगवान में जो सर्ववशीकारत्व शक्ति है उसका नाम ऐश्वर्य। सबको वश में कर लेने की जो शक्ति है उसका नाम ऐश्वर्य है। भगवान की इस ऐश्वर्य शक्ति के अधीन प्राकृत और अप्राकृत सभी वस्तुएँ अधीन हैं। वे किसी भी वस्तु के द्वारा किसी भी काम को कर सकते हैं। जगत में ऐसी कोई वस्तु नहीं जो उनकी अधीनता छोड़कर स्वतंत्रभाव से कुछ भी करने में समर्थ हो। यह उनका ऐश्वर्य है। छुद्रतम धूलिकण से लेकर सुमेरु पर्यन्त और जलबिन्दु से लेकर समुद्र पर्यन्त, श्वास वायु से लेकर प्रलय के तूफान पर्यन्त और छोटे से क्षुद्र जीवाणु से लेकर ब्रह्मा पर्यन्त, अचेतन अथवा चेतन सारी वस्तुएँ ही उनकी ऐश्वर्य शक्ति द्वारा नियन्त्रित हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. विष्णु पुराण।6।5।66-69
  2. विष्णु पुराण 6।5।79

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