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श्रीरासपंचाध्यायी -हनुमान प्रसाद पोद्दार
पाँचवाँ अध्याय
परीक्षित! यमुना जी के जल में वे व्रजतरुणियाँ प्रेममयी चितवन से श्रीकृष्ण की ओर देखती हुई तथा खिलखिलाकर हँसती हुई उन पर चारों ओर से खूब जल उलीचने लगीं। इस दृश्य को देखकर विमानों पर बैठे हुए देवता फूल बरसाकर उनकी स्तुति करने लगे। इस प्रकार अपने-आप में ही नित्य रमण करने वाले भगवान स्वयं गजराज की भाँति यमुना जल में गोपांगनाओं के साथ जल-विहार की लीला करने लगे।।24।।
इसके पश्चात यमुना जी से निकरलकर भ्रमरों तथा व्रजयुवतियों से घिरे हुए भगवान उस रमणीय उपवन में गये, जहाँ सब और स्थल में सुन्दर सुगन्धयुक्त पुष्प खिले हुए थे और उनकी सुगन्ध का प्रसार करती हुई मन्द मनोहर वायु चल रही थी। उस उपवन में भगवान उसी प्रकार विचरने लगे, जैसे मद चुवाता हुआ गजराज हथिनियों के साथ घूम रहा हो।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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