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श्रीरासपंचाध्यायी -हनुमान प्रसाद पोद्दार
चौथा अध्याय
भगवान श्यामसुन्दर के दर्शन से उन गोपसुन्दरियों को इतना महान आनन्द हुआ कि उनके हृदय की सारी व्यथा मिट गयी। वे गोपियाँ भगवान को पाकर उसी प्रकार पूर्णकाम हो गयीं, जिस प्रकार श्रुतियाँ कर्मकाण्ड के वर्णन के अनन्तर ज्ञानकाण्ड का प्रतिपादन करके पूर्णकाम हो जाती हैं। अब उन्होंने वक्षःस्थल पर लगी हुई केसर से चिह्नित अपनी ओढ़नी को अपने परम प्रियतम भगवान श्रीकृष्ण के विराजने के लिये वहाँ बिछा दिया।।13।।
बड़े-बड़े योगेश्वर अपने विशुद्ध हृदय-कमल में जिन भगवान के आसन की कल्पना किया करते हैं, पर बैठा नहीं पाते, वे ही सर्वसमर्थ सर्वेश्वर भगवान श्रीकृष्ण यमुना-तट की वालुका में गोपियों की ओढ़नी पर बैठ गये। गोपियों ने उन्हें सब ओर से घेर लिया और उनकी पूजा करने लगीं। त्रिलोकी की समस्त सौन्दर्य-शोभा के जो एकमात्र परम आश्रय हैं, ऐसे अनन्त-सौन्दर्य-माधुर्यमय दिव्य विग्रह को धारण किये उस समय वे अत्यन्त सुशोभित हो रहे थे।।14।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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