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श्रीरासपंचाध्यायी -हनुमान प्रसाद पोद्दार
चौथा अध्याय
उनमें से किसी गोपी ने प्रमुदित होकर भगवान श्यामसुन्दर के कर-कमल को अपने हाथों में ले लिया। किसी ने उनकी चन्दन से चर्चित भुजा को अपने कंधे पर रख लिया।।4।।
किसी सुन्दरी गोपी ने उनका चबाया हुआ पान अपने दोनों हाथों में ले लिया और एक गोपी ने, जिसके हृदय में विरह की आग धधक रही थी, उसे शान्त करने के लिये भगवान के चरण-कमल को अपने वक्षःस्थल पर रख लिया।।5।।
एक व्रजसुन्दरी प्रणय कोप से विहल होकर, अपनी धनुष के समान टेढ़ी भौहों को चढ़ाकर और दाँतों से होठ दबाकर अपने कटाक्षरूपी बाणों से बींधती हुई-सी उनकी ओर ताकने लगी।।6।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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