रास पंचाध्यायी -हनुमान प्रसाद पोद्दार पृ. 209

श्रीरासपंचाध्यायी -हनुमान प्रसाद पोद्दार

चौथा अध्याय

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काचित् कराम्बुजं शौरेर्जगृहेऽञ्जलिना मुदा।
काचिद्दधार तद्बाहुमंसे चन्दनरूषितम्।।4।।

उनमें से किसी गोपी ने प्रमुदित होकर भगवान श्यामसुन्दर के कर-कमल को अपने हाथों में ले लिया। किसी ने उनकी चन्दन से चर्चित भुजा को अपने कंधे पर रख लिया।।4।।

काचिदञ्जलिनागृह्णात् तन्वी ताम्बूलचर्वितम्।
एका तदङ्घ्रिकमलं संतप्ता स्तनयोरधात्।।5।।

किसी सुन्दरी गोपी ने उनका चबाया हुआ पान अपने दोनों हाथों में ले लिया और एक गोपी ने, जिसके हृदय में विरह की आग धधक रही थी, उसे शान्त करने के लिये भगवान के चरण-कमल को अपने वक्षःस्थल पर रख लिया।।5।।

एका भ्रुकुटिमाबध्य प्रेमसंरम्भविह्वला।
घ्नतीवैक्षत् कटाक्षेपैः संदष्टदशनच्छदा।।6।।

एक व्रजसुन्दरी प्रणय कोप से विहल होकर, अपनी धनुष के समान टेढ़ी भौहों को चढ़ाकर और दाँतों से होठ दबाकर अपने कटाक्षरूपी बाणों से बींधती हुई-सी उनकी ओर ताकने लगी।।6।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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