रास पंचाध्यायी -हनुमान प्रसाद पोद्दार पृ. 19

श्रीरासपंचाध्यायी -हनुमान प्रसाद पोद्दार

रासलीला-चिन्तन-2

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स्वर्गाश्रम (ऋषिकेश) में दिये गये प्रवचन

भगवान के देखते ही जगत की उत्पत्ति हो गयी। वैसे ही बड़ी विचित्र बात है कि बसन्त में खिलने वाले तमाम पुष्प शरद में खिल गए। शरद की रात्रि बसन्त की रात्रियों से अधिक भावमयी हो गयी। भगवान ने देखा अर्थात रास के प्रारम्भ में भगवान के प्रेम वीक्षण से, प्रेमेक्षण से शरदकाल की दिव्य रात्रियाँ बन गयीं। इसीलिये वहाँ पर एक बड़ी सुन्दर चीज है समझने की। ‘ता रात्रीः’ कहा है भगवान ने। हम शरद पूर्णिमा की रात्रि को मनाते हैं रास-पूर्णिमा। वह एक रात्रि नहीं थी।

भगवान ने देखा तो अनेक रात्रियों की एक रात्रि हो गयी। अनेक दिव्य शरदकालीन रात्रियों की सृष्टि हो गयी देखते ही। मल्लिका पुष्प, चन्द्रिका इत्यादि जितनी भी उद्दीपन सामग्री वह सारी भगवान के द्वारा वेक्षित अर्थात लौकिक नहीं अप्राकृत - यह भाव दिखाया वेक्षित से कि भगवान ने देखा और उनके देखते ही वह अप्राकृत रात्रियों, अप्राकृत पुष्प, अप्राकृत चन्द्र की चाँदनी यह सब प्रकट हो गयी। अब क्या करें? इनके पास मन था नहीं। तो ‘मनश्चक्रे’ - भगवान ने मन का निर्माण किया। मन चाहिये और इनके पास अपना मन था नहीं तो गोपियों ने अपना-अपना मन इन्हें दे दिया। भगवान बिना मन के हैं। इनका मन जो है वह भी इनका स्वरूप है। मन में संकल्प-विकल्प होते हैं और ये संकल्प-विकल्प रहित हैं। भगवान को माना है - संकल्प शून्य। संकल्प शून्य मनवाला नहीं होता है। इनके पास अपना मन नहीं है इसलिये इन्होंने मन का निर्माण किया। अर्थात यह श्रीकृष्ण के विहार के लिये नवीन मन की दिव्य सृष्टि हुई। वह मन कहाँ से आया? गोपियों का जो मन था वह श्रीकृष्ण का मन बन गया।

यह सृष्टि की किसने? योगमाया ने। योगमाया के दो काम होते हैं माया के कई रूप हैं। एक योगमाया के द्वारा भगवान काम कराते हैं और एक योगमाया भगवान से काम कराती है। भगवान का जो प्राकट्य होता है वह और चीज है। यहाँ पर भगवान के इस रास में योगमाया की जो क्रिया है वह दूसरी है। योगमाया वहाँ सारा स्टेज बनाती है। मन बनाना, स्टेज बनाना, सारा योगमाया का काम। योगमाया को प्रकट करके यहाँ भगवान ने यह सब काम किया। भगवान की जो वंशी है वह कैसी है? इसमें जड़ को चेतन और चेतन को जड़, चल को अचल और अचल को चल बनाने की शक्ति है। विक्षिप्त को समाधिस्थ कर देती है। पागल आदमी जो नाच रहा हो वह वंशीध्वनि को सुनकर समाधिस्थ हो जायेगा और योगी जो समाधिस्थ बैठे हैं वे मुरली सुनते ही विक्षिप्त हो जायेंगे। भगवान का यह प्रेमदान हुआ गोपियों को। प्रेमदान को पाते ही गोपियाँ निश्चिन्त हो गयी थीं। जब तक प्रेम नहीं मिलता भगवान का और भगवान में राग नहीं होता तब तक निश्चिन्त नहीं हो सकता। चिन्ता तब तक मिट नहीं सकती।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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