रास पंचाध्यायी -हनुमान प्रसाद पोद्दार पृ. 171

श्रीरासपंचाध्यायी -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पहला अध्याय

Prev.png
श्रीशुक उवाच

इति विप्रियमाकर्ण्य गोप्यो गोविन्दभाषितम्‌।
विषण्णा भग्नसंकल्पाश्चिन्तामापुर्दुरत्ययाम्‌।।28।।

श्री शुकदेव जी ने कहा - परीक्षित! गोविन्द की उपर्युक्त अत्यन्त अप्रिय बातें सुनकर गोपियाँ खिन्न हो गयीं, उनकी आशा टूट गयी और वे भीषण चिन्ता के अथाह समुद्र में डूब गयीं।।28।।

कृत्वा मुखान्यव शुच: श्वसनेन शुष्यद्‌-
बिम्बाधराणि चरणेन भुवं लिखन्त्य:।
अस्त्रैरुपात्तमषिभि: कुचकुंकुमानि
तस्थुर्मृजंत्य उरुदु:खभरा: स्म तूष्णीम्‌।।29।।

उनका हृदय दुःख से भर गया, उनके लाल-लाल पके हुए बिम्बफल-से अधर शोक के कारण चलने वाले लंबे तथा गरम श्वासों के ताप से सूख गये, उन्होंने अपने मुख नीचे की ओर लटका लिये और पैर के नखों से वे पृथ्वी को कुरेदने लगीं। उनके नेत्रों से काजल से सने आँसू बह-बहकर वक्षःस्थल पर पहुँच गये और वहाँ लगी हुई केसर को धोने लगे। वे चुपचाप खड़ी रह गयीं, कुछ भी बोल न सकीं।।29।।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

रास पंचाध्यायी -हनुमान प्रसाद पोद्दार
क्रमांक पाठ का नाम पृष्ठ संख्या

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः