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श्रीरासपंचाध्यायी -हनुमान प्रसाद पोद्दार
रासलीला-चिन्तन-2
इसलिये
इसी प्रकार गोपियों की देह भी दिव्य जगत की, भगवान की स्वरूपभूत जो अन्तरंग शक्तियाँ हैं, उनसे उनका शरीर है। इसी प्रकार इनका सम्बन्ध भी चिन्मय है। यह उच्चतम भावराज्य की जो लीला है यह स्थूल शरीर और मन से परे की है। इसकी प्रतीति होती है आवरण भंग होने की बाद। आवरण कहते हैं जैसे हमारे और किसी दूसरी चीज के बीच पर्दा पड़ा हुआ हो। इस पर्दे का नाम है आवरण। जब तक पर्दा है तब तक चीज स्पष्ट दिखाई नहीं देती है। यह आवरण भंग होने के पश्चात भगवान की स्वीकृति होती है। तब उसमें प्रवेश होता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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