विषय सूची
श्रीरासपंचाध्यायी -हनुमान प्रसाद पोद्दार
पहला अध्याय
दुहंत्योऽभिययु: काश्चिद् दोहं हित्वा समुत्सुका:। कुछ अपने पति-पुत्रादि को भोजन परोस रही थीं, वे परोसना छोड़कर, कुछ छोटे बालकों को दूध पिला रही थीं, वे दूध पिलाना छोड़कर चल दीं। कुछ अपने पतियों की सेवा-शुश्रुषा कर रही थीं, वे सेवा-शुश्रुषा छोड़कर और कुछ स्वयं भोजन कर रही थीं, वे भोजन करना छोड़कर प्रियतम श्रीकृष्ण के पास चल पड़ीं।।6।। लिम्पन्त्य प्रमृजन्त्योऽन्या अञ्जन्त्य: काश्च लोचने। कुछ दूसरी गोपियाँ अपने शरीर में अंगराग-केसर-चन्दनादि लगा रहीं थीं, वे उसे छोड़कर, कुछ उबटन लगा रही थीं, वे उबटना छोड़कर और कुछ आँखों में अन्जन लगा रही थीं, वे अन्जन लगाना छोड़कर चल दीं। कुछ गोपांगनाएँ वस्त्र-अलंकार पहन रही थीं, वे उलटे-पलटे वस्त्राभूषण धारणकर-जैसे ओढ़नी को कमर में बाँधकर, लहँगा ओढ़कर, गले का हार कमर में पहनकर और करधनी को गले में डालकर-प्रियतम श्रीकृष्ण से मिलने के लिये पागल की तरह उनके पास दौड़ पड़ीं।।7।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रमांक | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज