रास पंचाध्यायी -हनुमान प्रसाद पोद्दार पृ. 163

श्रीरासपंचाध्यायी -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पहला अध्याय

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दुहंत्योऽभिययु: काश्चिद्‌ दोहं हित्वा समुत्सुका:।
पयोऽधिश्रित्य संयावमनुद्वास्यापरा ययु:।।5।। </center श्रीकृष्ण का वंशीनाद सुनते ही-प्रियतम भगवान का आह्णान सुनते ही उनकी ऐसी दशा हुई कि श्रीकृष्ण से मिलने के लिये सदा ही समुत्सुक रहने वाली कुछ गोपियाँ जो दूध दुह रही थीं, वे दुहना बीच में ही छोड़कर चल दीं। कुछ चूल्हे पर दूध औटा रही थीं, वे दूध उफनता हुआ छोड़कर तथा कुछ दूसरी गोपियाँ हलुआ पका रही थीं, वे तैयार हुए हलुए को चूल्हे से बिना उतारे ही ज्यों-की-त्यों छोड़कर चली गयीं।।5।। <center> परिवेषयन्त्यस्तद्धित्वा पाययन्त्य: शिशून्‌ पय:।
शुश्रुषन्त्य: पतीन्‌ काश्चिदश्नन्त्योऽपास्य भोजनम्‌।।6।।

कुछ अपने पति-पुत्रादि को भोजन परोस रही थीं, वे परोसना छोड़कर, कुछ छोटे बालकों को दूध पिला रही थीं, वे दूध पिलाना छोड़कर चल दीं। कुछ अपने पतियों की सेवा-शुश्रुषा कर रही थीं, वे सेवा-शुश्रुषा छोड़कर और कुछ स्वयं भोजन कर रही थीं, वे भोजन करना छोड़कर प्रियतम श्रीकृष्ण के पास चल पड़ीं।।6।।

लिम्पन्त्य प्रमृजन्त्योऽन्या अञ्जन्त्य: काश्च लोचने।
व्यत्यस्तवस्त्राभरण: काश्चित्‌ कृष्णान्तिकं ययु:।।7।।

कुछ दूसरी गोपियाँ अपने शरीर में अंगराग-केसर-चन्दनादि लगा रहीं थीं, वे उसे छोड़कर, कुछ उबटन लगा रही थीं, वे उबटना छोड़कर और कुछ आँखों में अन्जन लगा रही थीं, वे अन्जन लगाना छोड़कर चल दीं। कुछ गोपांगनाएँ वस्त्र-अलंकार पहन रही थीं, वे उलटे-पलटे वस्त्राभूषण धारणकर-जैसे ओढ़नी को कमर में बाँधकर, लहँगा ओढ़कर, गले का हार कमर में पहनकर और करधनी को गले में डालकर-प्रियतम श्रीकृष्ण से मिलने के लिये पागल की तरह उनके पास दौड़ पड़ीं।।7।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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