रास पंचाध्यायी -हनुमान प्रसाद पोद्दार पृ. 16

श्रीरासपंचाध्यायी -हनुमान प्रसाद पोद्दार

रासलीला-चिन्तन-2

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स्वर्गाश्रम[1] में दिये गये प्रवचन


इसलिये यहाँ उनकी दृष्टि में केवल चिदानन्दमय स्वरूप श्रीकृष्ण हैं और उनके हृदय में हैं श्रीकृष्ण को तृप्त करने वाला प्रेमामृत। बहुत सुन्दर प्रसंग है। इसमें सबसे पहले आया है- ‘रन्तुं मनश्चक्रे’ - भगवान ने रमण की इच्छा की। तो भगवान की इच्छा को पूर्ण करना है यहाँ पर गोपियों को। गोपियों की इच्छा भगवान पूर्ण नहीं कर रहे हैं। भगवान की इच्छा को पूर्ण करना है श्रीगोपांगनाओं को। यहाँ क्या चीज है?

यहाँ गोपियों की दृष्टि में हैं सच्चिदानन्दमय श्रीकृष्ण और उनके हृदय में श्रीकृष्ण को तृप्त करने वाला प्रेमामृत। इसलिये यहाँ पर किसी प्रकार के काम का, कामना का लेश नहीं है। क्योंकि इस स्थिति में न स्थूल देह है, न उसकी स्मृति है, उन उस स्थूल देह से होने वाले अंग-संगादि की कल्पना है। यहाँ पर जो कुछ है वह भगवान का विशुद्ध अनुराग रस का प्राकट्य है।

जिन लोगों ने गोपियों को पहचाना है, जिन लोगों ने गोपियों की चरण-धूलि का स्पर्श करने का अवसर पाया है वे ही लोग इस रहस्य को जानते हैं। यहाँ तक आया है कि ब्रह्मा जी, शंकर जी, उद्धव जी, नारद, अर्जुन ये सब-के-सब कोई महान देवता हैं, कोई सिद्ध पुरुष हैं, कोई भगवान के बड़े ऊँचे भक्त हैं। इन लोगों ने इस रहस्य को जानने की इच्छा की। तब इन लोगों ने उपासना की, गोपियों की उपासना की।

यह कथा पद्मपुराण में आती है। गोपियों की उपासना करने पर भगवान के चरणों में उपस्थित होकर इस रस को देखने की जब इन लोगों को आज्ञा मिली, वरदान मिला तब वे इस रस को जान सके। गोपियों के दिव्य भाव को साधारण स्त्री-पुरुषों के भाव जैसा मानना, यह गोपियों के और भगवान के प्रति अपराध है। गोपियों की इस रास-लीला को साधारण नर-नारियों की क्रीडा के समान मानना, इसको अपराध माना है और इसीलिये ऐसा कहा गया है कि रासपञ्चाध्यायी का श्रवण-मनन वह करे जो इस अप्राकृत दिव्य धाम में विश्वास रखता हो और इसी भावना से इसको सुनना, कहना चाहता हो; नहीं तो सुनने वाले को और कहने वाले को दोनों को पाप होगा। ऐसा वर्णन आता है।

इसलिये रास जब हुआ तो परीक्षित तक को सन्देह हो गया। परीक्षित तक ने रासपञ्चाध्यायी के अन्त में यह प्रश्न कर लिया कि भगवान ने यह क्यों किया? वह तो धर्म की रक्षा के लिये उत्पन्न हुए थे। तब शुकदेव जी ने यह प्रसंग वहीं पर बन्द कर दिया; केवल उसका उत्तर देकर कि भगवान की बात दूसरे आदमी नहीं सोच सकते।

अग्नि सबको खा जाती है पर अग्नि पर किसी का स्पर्श नहीं होता। भगवान शंकर ने हलाहल पी लिया, सब नहीं पी सकते। तीसरी बात एक और कही कि भगवान के सम्बन्ध में पहले यह जानना है कि भगवान कौन है? गोपियों के पतियों की आत्मा कौन है? भगवान हैं, इसलिये तुम इस पर सन्देह न करो। इस पञ्चाध्यायी को जो कोई भाव से सुनेगा, समझेगा उसके हृदयोद्वेग का नाश हो जायगा। फल बता दिया और कथा बन्द कर दिये।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ऋषिकेश

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