रास पंचाध्यायी -हनुमान प्रसाद पोद्दार पृ. 131

श्रीरासपंचाध्यायी -हनुमान प्रसाद पोद्दार

रासलीला-चिन्तन-2

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स्वर्गाश्रम (ऋषिकेश) में दिये गये प्रवचन
(9)
भगवानपि ता रात्रीः शरदोत्फुल्लमल्लिकाः।
वीक्ष्य रन्तुं मनश्चक्रे योगमायामुपाश्रितः।।

श्रीरासपञ्चाध्यायी के प्रथम श्लोक में योगमाया क्या है? यह प्रसंग चल रहा है और यहाँ योगमाया श्रीराधिका है; यह प्रतिपादन किया जा रहा है। सबसे पहली चीज यह ध्यान में रखने की है कि यह भगवान की लीला है और श्रीराधा, श्रीगोपांगनायें और भगवान इनमें कोई अन्तर नहीं है। एक भगवान ही तीन रूपों में हैं। नित्य एक राधाकृष्ण हैं, उनमें दो हुये राधा और कृष्ण और राधा से काय-व्यूहरूपा गोपियाँ उत्पन्न हुई। इसलिये एक ही रूप की यह लीला है। यह स्वकीया-परकीया इत्यादि जो भाव हैं, यह रस-निष्पत्ति के भाव हैं। इनको लौकिक स्वकीया-परकीया इत्यादि रूप में नहीं देखना चाहिये और जो ऐसा देखना चाहते हैं उनको यह कथा नहीं सुननी-सुनानी चाहिये। यहाँ पर टीकाकारों ने यह बात कह दी है कि जिनके मन में श्रीकृष्ण के प्रति और राधा तथा गोपियों के प्रति लौकिक बुद्धि को हो उनको यह प्रसंग नहीं सुनना-सुनाना चाहिये। नहीं तो अपराध होगा उनका। श्रीकृष्ण का तो कुछ बिगड़ेगा नहीं लेकिन जो उनमें लौकिक बुद्धि करके और अपनी उस बुद्धि के अनुसार लौकिक अर्थ लेंगे उनका अपराध होगा। अब विषय ऐसा आयेगा कि जिसमें यह सिद्ध किया जायेगा कि लौकिक भावानुरूप ही भगवान ने रमण की इच्छा की, भगवत भावानुरूप नहीं। इसीलिये सावधान किया गया है।

भगवान की कान्ताओं के तीन रूप हैं। लक्ष्मी, महीषी और व्रजांगनाएँ। भगवान नारायण की नित्य स्वरूपभूता जो लक्ष्मी आदि हैं - वे लक्ष्मी हैं, श्री हैं, भू हैं, लीला हैं - अनेक उनके नाम हैं। वे सारे लक्ष्मी के ही भेद हैं। वे हैं और महिषियाँ जिनका विवाह पद्धति के अनुसार भगवान राघवेन्द्र के साथ रामावतार में, द्वारिकाधीश भगवान श्रीकृष्ण के साथ इस कृष्णलीला में विवाह सम्पन्न हुआ है वे राजमहिषियाँ भी कान्ता हैं। ये राजमहिषियाँ और लक्ष्मी यह स्वकीया कान्ता भाव से भगवान के साथ सम्बन्ध रखती हैं और रसास्वादन करती हैं। ये पतिव्रता शिरोमणि हैं और श्रीराधा जी परकीया कान्ता भाव से सम्बन्ध रखती हैं और लीला रसास्वादन करती हैं। पर इनका त्याग इतना ऊँचा है कि ये पतिव्रता शिरोमणियों के द्वारा पूजित हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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