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श्रीरासपंचाध्यायी -हनुमान प्रसाद पोद्दार
रासलीला-चिन्तन-2
‘गोपवेष वेणुकर किशोर नटवर’ बस, यही वेष रासलीला का है। श्रीकृष्ण के वंशीरव को सुनकर कृष्णगतप्राणा व्रजरमणियों का कृष्ण के साथ मिलन हुआ। यहाँ पर योगमाया वंशी ही रासक्रीडा में प्रधान सहायिका और अपार धैर्य लज्जादिशालिनी अन्तःपुरचारिणी गोप कुल कामिनी अपने-अपने लज्जा, धैर्य आदि सारे बन्धनों को छिन्न करके इस वंशी की प्रेरणा से ही, वंशी के द्वारा आकर्षित हो करके ही उन्होंने इस योग को प्राप्त किया। वंशी ने क्या किया? यह योगमाया के रूप में केवल श्रीकृष्ण के साथ इनका योग करा दिया और गोपियों के साथ उनके पति, भ्राता, पुत्र, मित्र, स्वजन, आत्मीय, वेदधर्म, लोकधर्म, देहधर्म, कुल, शील, लज्जा, धैर्य इत्यादि सबके साथ अयोग करवा दिया। यह वंशी है अयोग माया और वंशी ही योगमाया है। कहते हैं कि लज्जा, शील जो है यह तो मोह का किला और गुरुजन का मान डर यह सिंहद्वार। इस किले का धर्म इसके किवाड़ और कुल का अभिमान इसका बड़ा भारी ताला। इस पर बिजली गिरी। बिजली क्या गिरी? वंशीरव मानो यहाँ बिजली आयी। यह किला ढह गया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ पद-रत्नाकर, पद सं. 743
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