रास पंचाध्यायी -हनुमान प्रसाद पोद्दार पृ. 126

श्रीरासपंचाध्यायी -हनुमान प्रसाद पोद्दार

रासलीला-चिन्तन-2

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स्वर्गाश्रम (ऋषिकेश) में दिये गये प्रवचन


वंशीधारी भगवान, मुरलीधारी भगवान, यह यहाँ पर भगवान का स्वरूप है। क्योंकि यह मुरलीधारी भगवान के बिना दूसरे किसी आयुधधारी भगवान के लिये यह परमरमणीय रमणलीला कभी सम्भव हीं नहीं है। यह मुरली मनोहर जो भगवान हैं इनको छोड़कर किसी दूसरे आयुधधारी-वो भगवान ही हैं पर उनके लिये यह रमण लीला सम्भव नहीं, और लीला भले वे कर लें। इस लीला में प्रेममत्त गोपियों के रास-नृत्य हैं। प्रेम-आलस्य-शिथिल बाहु-लता द्वारा श्रीकृष्ण का कण्ठालिंगन होता है। कृष्णमय पीतवसन द्वारा उकने श्रमजलसक्त वदनों का मार्जन करते हैं। उनके कपोल के साथ कपोल-संस्थापन करके चर्बित ताम्बुल अर्पण करते हैं। वन-विहार, नृत्य-गीतादि, यमुना-विहार करते हैं। यह मुरलीधारी के सिवा और कहीं नहीं हो सकता।

‘गोपवेष वेणुकर किशोर नटवर’ बस, यही वेष रासलीला का है। श्रीकृष्ण के वंशीरव को सुनकर कृष्णगतप्राणा व्रजरमणियों का कृष्ण के साथ मिलन हुआ। यहाँ पर योगमाया वंशी ही रासक्रीडा में प्रधान सहायिका और अपार धैर्य लज्जादिशालिनी अन्तःपुरचारिणी गोप कुल कामिनी अपने-अपने लज्जा, धैर्य आदि सारे बन्धनों को छिन्न करके इस वंशी की प्रेरणा से ही, वंशी के द्वारा आकर्षित हो करके ही उन्होंने इस योग को प्राप्त किया। वंशी ने क्या किया? यह योगमाया के रूप में केवल श्रीकृष्ण के साथ इनका योग करा दिया और गोपियों के साथ उनके पति, भ्राता, पुत्र, मित्र, स्वजन, आत्मीय, वेदधर्म, लोकधर्म, देहधर्म, कुल, शील, लज्जा, धैर्य इत्यादि सबके साथ अयोग करवा दिया। यह वंशी है अयोग माया और वंशी ही योगमाया है। कहते हैं कि लज्जा, शील जो है यह तो मोह का किला और गुरुजन का मान डर यह सिंहद्वार। इस किले का धर्म इसके किवाड़ और कुल का अभिमान इसका बड़ा भारी ताला। इस पर बिजली गिरी। बिजली क्या गिरी? वंशीरव मानो यहाँ बिजली आयी। यह किला ढह गया।

लज्जा शील मोहगृह भारी, सिंहद्वार गुरुजन का मान।
धर्म-कपाट लगे थे अति दृढ़ ताला था कुल का अभिमान।
वंशीरव के वज्रपात से टूटा लज्जा-दुर्ग महान।
भूमिसात हो गया सभी कुछ, हुई भूमि सब एक-समान।।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पद-रत्नाकर, पद सं. 743

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