रास पंचाध्यायी -हनुमान प्रसाद पोद्दार पृ. 125

श्रीरासपंचाध्यायी -हनुमान प्रसाद पोद्दार

रासलीला-चिन्तन-2

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स्वर्गाश्रम (ऋषिकेश) में दिये गये प्रवचन


यह ब्रह्माण्डपुराण का वचन है तो नारद जी ने कहा कि चक्रधारी नारायण चक्र धारण करके भी जिन असुरों का विनाश सहज में नहीं कर सकते। आप नयी-नयी बाल लीला से कर दिये। वह भी बाललीला का एक अंग हुआ, वह भी खेल की एक पद्धति ही हुई असुर मारन। उसमें कोई असुर मारन का प्रयास नहीं किया। वह भी एक खेल का ढंग। श्रीकृष्ण ने नयी-नयी बाललीला करते हुए उन सबका विनाश कर दिया। आपकी कृष्णलीला का जो अपरिसीम माहात्म्य है यह कहा नहीं जा सकता। आज सुदामा, श्रीदाम, सुबल आदि गोप बालकों के साथ गोष्ठ में खेलते-खेलते जहाँ बाल लीला वश-खेल में देखा टेढ़ी भौंह कर दी गुस्से में तो महाराज जो आकाश में ब्रह्मादि देवता हैं वे भी डरने लगें। यह कन्हैया ने खेलते-खेलते भौंह टेढ़ी कैसे कर दी। यह स्थिति।

यह भगवान वंशीधारी श्रीकृष्ण इनकी लीला बड़ी अद्भुत और बड़ी मनोरम। कितनी और दूसरी मूर्तियाँ हैं। बढ़िया-से-बढ़िया मूर्ति हो, सुन्दर-से-सुन्दर हो पर ये जब हाथ में मुरली ले करके और शरीर में तीन टेढ़ बनाकर, बड़ी बंकिमा के साथ जब कदम्ब के नीचे खड़े हो जाते हैं तो फिर इस मूर्ति को देखकर के सारा सौन्दर्य का सागर भी सूखने लगता है इनके सामने। तमाम-तमाम लोग मोहित हो जाते हैं ये किन्नर, गन्धर्व इत्यादि की तो बात ही क्या है कामदेव भी मूच्छित हो जाते हैं कि हम तो मरे और मर ही जो हैं यहाँ रहते नहीं। सारा काम सौन्दर्य प्रतिहत होकर अपना जीवन लेकर भागता है कि यहाँ रहेंगे तो मर जायेंगे। इस सौन्दर्य के सामने जल जायेंगे, रहेंगे नहीं। इस प्रकार की सुन्दरता इस मुरली मनोहर रूप में है। तो कहते हैं कि श्रीकृष्ण की मूर्ति में और लीला में जो सौन्दर्य-माधुर्य का प्रकाश है वह व्रज में ही है। बोले-

चतुर्धा माधुर्य तस्य ब्रजैव विराजते
ऐश्वर्य क्रीड वेणुस्तथा श्रीविग्रहश्च

भगवान के माधुर्य-सम्पुटित ऐश्वर्य, गोप-गोपीगणों के प्रेम से मुग्ध होकर प्रेममयी लीला, समस्त प्राणियों के मन को हरण करने वाला वेणुनाद और अपने आपको भी आकर्षित करने वाला श्रीविग्रह-सौन्दर्य-माधुर्य-रूप यह केवल व्रजधाम में ही है और कहीं नहीं। यह मूर्ति कहीं नहीं। यहाँ पर ‘भगवान्पि ता रात्रीः’ जिन भगवान ने लीला की वह भगवान कौन?

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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