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श्रीरासपंचाध्यायी -हनुमान प्रसाद पोद्दार
रासलीला-चिन्तन-2
यह ब्रह्म संहिता का मंत्र है। गोलोक धाम का वर्णन करते हैं कि वहाँ क्या चमत्कार है। कहते हैं कि जो कृष्ण की कान्तायें हैं यह तो साक्षात लक्ष्मी हैं और कान्त स्वयं भगवान परम पुरुष श्रीकृष्ण हैं - ‘कान्तः परमपुरुषः’ और उनकी लीलास्थली वृन्दावन के जो वृक्ष है, ये सारे-के-सारे दिव्य कल्पतरु हैं और यहाँ की जो भूमि है यह चिन्तामणिमयी है और यहाँ का जल ही अमृत है, यहाँ की बोली ही गान है। बोली बोलते हैं मानो गाते ही हैं - ऐसी मीठी और यहाँ का चलना ही मानो नाचना है। सब नाचते हुये चलते हैं मौज से। यहाँ शोक तो आता नहीं विषाद आता नहीं, भय आता नहीं तो यहाँ सबका जीवन नाचता है। वंशी प्रिय सखी है। ये चन्द्र, सूर्यादि, ज्योतिर्मण्डल और शब्द, स्पर्शादि जितनी भोग्य वस्तुएँ हैं सब यहाँ पर सच्चिदानन्दमयी हैं। श्रीकृष्ण की वंशी साधारण वंशी की भाँति कोई बजने वाली चीज नहीं है। यह बाजा नहीं है। यह तो श्रीकृष्ण के साथ मिलन करा देने वाली सर्वश्रेष्ठ दूती है। यह जड बाँस की बनी हुई चीज नहीं। यह सच्चिदानन्दमयी है। यह कैसे मानें? गोपियाँ परम प्रेमवती थीं और श्रीकृष्ण को अपना मन दे चुकी थीं यह भी ठीक और समुत्कण्ठित भी थीं यह भी ठीक, परन्तु धैर्य, लज्जा, कुलशील, मान इत्यादि जो बेड़ियाँ पड़ी हुई थीं इन बेड़ियों को तोड़कर श्रीकृष्ण के समीप पहुँचना उनके लिये बड़ा कठिन था। मिलनोत्कण्ठा में धैर्य, लज्जादि बड़े भारी बन्धन थे। इनको हटाना बड़ा मुश्किल है। परन्तु इस वंशी ने जादू कर दिया। जहाँ यह वंशी बजी और जहाँ वंशी की ध्वनि श्रीगोपांगनाओं के कानों में पहुँची कि सारे बन्धन पटापट टूट गये। अपने आप बन्धन सारे छिन्न हो गये और वे उसी क्षण श्रीकृष्ण से मिलने के लिये दौड़ पड़ी। अतः श्रीकृष्ण के साथ गोपियों का मिलन करा देने में परम सहायता करने वाली यदि कोई है तो वंशी ध्वनि ही है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ ब्रह्मसंहिता 5।56
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