रास पंचाध्यायी -हनुमान प्रसाद पोद्दार पृ. 121

श्रीरासपंचाध्यायी -हनुमान प्रसाद पोद्दार

रासलीला-चिन्तन-2

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स्वर्गाश्रम (ऋषिकेश) में दिये गये प्रवचन


बुद्ध को बुलाया, सिद्धार्थ को, एक महीने का बच्चा और लड़की-बहू घर में छोड़ के निकल गये। तो उनके बुलाने पर उनकी वंशी-ध्वनि सुनने पर कोई घर में रह सके यह सम्भव नहीं और हम तो कहते हैं कि हमें वंशी ध्वनि कभी सुना मत देना। यह कहते हैं माया वंचना दूर रहे। वंशीरव के सुनने से सबकी जागृति हो जाती है; श्रीकृष्ण की ओर जाने की तीव्र इच्छा उत्पन्न हो जाती है। यह वंशी ध्वनि सुनने के लिये कानों को तैयार रखना चाहिये। टीकाकार कहते हैं कि यह साधन है। वंशी-ध्वनि कोसु नना, भगवान के आवाहन मंत्र को सुनने के लिये कान लगाये रहना चाहिये। जब वाते बुला लें सब छोड़ के चले जायँ।

वंशी-ध्वनि क्या करती है? श्रीदाम, सुदाम, सुबलादि गोपबालकों को माता की गोद त्याग देने के लिये बाध्य कर देती है। मातृ क्रोड (गोद) का परित्याग करके कृष्ण के निकट दौड़े चले आते हैं; और फिर क्या करती है वंशी ध्वनि? जब संध्या का समय हुआ, गायों को बटोरना है तो कहाँ ढूँढ़ते फिरेंगे, चढ़ जाते हैं कदम्ब पर और जाकर वंशी-ध्वनि करते हैं। ध्वनि होती है तो सारी गाये दूर-दूर से दौड़ी आकर वहाँ इकट्ठी हो जाती हैं। सब-की-सब उर्ध्वपुच्छ-पूँछों को उठा-उठाकर और हम्बाख करती हुई सारी गायें इकट्ठी हो जाती हैं और यमुना-समुद्रगामिनी यमुना विपरीत गति से लौटकर कृष्ण के चरण प्रान्तों में लुट पड़ती हैं। यह प्रसंग आया है कि वंशीध्वनि से-यमुना की गति बदल जाती। यमुना स्वाभाविक बहती है समुद्र की ओर पर इनकी जब वंशी ध्वनि होती है तो यमुना की गति पलट जाती है। यमुना चाहती है कि जल्दी-से-जल्दी आकर उमड़कर श्यामसुन्दर के चरणों को धो दें। यह वंशी-ध्वनि का जादू और वंशी-ध्वनि को सुनकर यह व्रजवधुयें घर के कामों को, कुलधर्म इत्यादि को, जलांजलि देकर कृष्ण के पास आ जाती हैं। जलांजलि होता है मरने के बाद जो तर्पण में जलांजलि देते हैं। तो सारे कुल धर्म, गृहकर्म और अपनी ममता की तमाम चीजों को जलांजलि देकर कृष्ण के निकट आ जाती है। इससे सिद्ध होता है कि यह जो वंशी है यह कृष्ण के साथ मिलन कराने वाली एक माया-योगमाया यही है; और खास करके गोपियों के साथ कृष्ण का मिलन कराने वाली सर्वश्रेष्ठ दूती यह वंशी ध्वनि ही है। इसलिये जब-जब श्रीकृष्ण की इच्छा होती है कि गोपियों से मिलें तो किसी के पास आदमी नहीं भेजते, चिट्ठी भेजने की आवश्यकता नहीं, बस! मुरली फूँक देते हैं। जहाँ मुरली बजी कि सब अपने-आप दौड़ी आयीं। आकर्षण जाग गया। कहते हैं कि यह जो वंशी है यह प्रिय सखी है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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