रास पंचाध्यायी -हनुमान प्रसाद पोद्दार पृ. 111

श्रीरासपंचाध्यायी -हनुमान प्रसाद पोद्दार

रासलीला-चिन्तन-2

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स्वर्गाश्रम (ऋषिकेश) में दिये गये प्रवचन


ये स्थावर प्राणी सारे भगवान के पास जा नहीं सकते तो भगवान स्वंय पुष्प चयनादि के बहाने इनके पास जाते। इनके तले पहुँचते, भ्रमण करते और कृपारस सिंचन करके इन्हें कृतार्थ करते। अपने हाथ से किसी बेल को सहला देते, किसी की धूल झाड़ देते, किसी पर रस बरसा देते। किसी का स्पर्श कर देते। अतः ये सबके सब कृतार्थ हो गये। दूर से जब वंशी की ध्वनि होती तो वंशी के मधुर-स्वर को यह वनभूमि लेती तो सारे वन में श्रीकृष्ण के अंग से स्पर्शित वायु फैल जाती। तब क्या होता कि वृन्दावन की वनभूमि में रहने वाले सब वृक्ष सब लतायें प्रेम से पुलकित हो जाती। वंशी-ध्वनि सुनकर और भगवान के अंग-गंन्ध को पाकर पुलकित हो जाते और आमूल-जड़ से लेकर तमाम शाखाओं में फल-फूल सब-के-सब प्रकट हो जाते। सुशोभित हो जाता सारा वन-प्रदेश। पर बेचारों के पैर थे नहीं इसलिये श्रीभगवान के साथ-साथ ये वनभूमि में विचरण नहीं कर सकते थे। इसीलिये ‘अगमायामुपाश्रितः’ भगवान ने उनके निकट जाना स्वीकार किया और इसलिये वे जाकर करूणापूर्ण कर-स्पर्श से उनका आनन्दवर्धन करते।

इस प्रकार भगवान ने अगमाया का प्रकाश करके वृन्दावन के वृक्षों को बेलों को लता-वितानों को धन्य कर दिया और यह जगत में मानों घोषणा कर दी कि भाई! देखो! जिसके भी हृदय में मेरी सेवा की आकांक्षा जाग उठी वह अगर मेरे पास नहीं आ सकता तो उनके पास मैं पहुँच जाऊँगा उनको कृतार्थ करूँगा। यह मानों भगवान ने घोषणा कर दी यहाँ पर। क्रियात्मक उपदेश कर दिया, केवल लौकिक नहीं। रासलीला में भगवान ने पूर्णरूप से अगमाया का प्रकाश किया। क्यों ऐसा किया? इसका कारण बताते हैं कि पूर्वकल्पों में कृष्णलीला का दर्शन करके, गोपियों के साथ श्रीकृष्ण की मधुर लीला का श्रवण करके; गोपी भाव से श्रीकृष्ण की सेवा प्राप्ति के लिये लालसा बढ़ाकर बहुत से ऋषियों ने, मुनियों ने, बहुत-बहुत से साधकों ने रागानुगा भक्ति के द्वारा सिद्धि प्राप्त की थी। वे सभी श्रीकृष्ण की इस प्रकट लीला के समय गोपीदेह धारण करके वात्सल्यवती गोपियों के वहाँ जन्मे थे।

श्रीकृष्ण ने रासलीला के समय अगमाया को प्रकट करके उन सबका इस लीला में प्रवेश करा दिया। साधन सिद्धा जो गोपियाँ थीं उनको ऐसा मानते हैं कि रसलीला के दिन ही इनका नित्यलीला में प्रवेश होता है। साधन सिद्धा गोपियों का हित सिद्धा गोपियों के साथ जो मिलन है, प्रवेश है नित्य लीला में, वह इसी समय होता है। यह रासलीला इसीलिये होती है कि ये साधनानुष्ठान का फल है। साधन सिद्धा गोपियों को हित सिद्धा गोपियों के साथ मिलाने का यह महान उत्सवपूर्ण आयोजन है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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