रास पंचाध्यायी -हनुमान प्रसाद पोद्दार पृ. 107

श्रीरासपंचाध्यायी -हनुमान प्रसाद पोद्दार

रासलीला-चिन्तन-2

Prev.png
स्वर्गाश्रम (ऋषिकेश) में दिये गये प्रवचन


यहाँ गोपियों के कहने का तात्पर्य यही कि हे श्रीकृष्ण! तुम हमारे लिये करोड़ो-करोड़ों प्राणों की अपेक्षा भी प्रियतम हो। तुम्हारी सेवा के बिना हमारी और कोई भी स्थिति हो ही नहीं सकती। तुम्हारी सेवा को छोड़कर क्षणमात्र के लिये भी हम दूसरा काम करें, इस प्रकार की हममें शक्ति है ही नहीं। इससे स्पष्ट सिद्ध होता है कि सब जगह से गोपियों का अयोग हो गया था। अगर अयोग न होता तो इतनी बात कहने की हिम्मत होती ही नहीं जैसे विप्र-पत्नियों में नहीं हुई। श्रीकृष्ण प्रेमवती गोपरमणियों के साथ रासलीला में जब प्रवृत्त हुये तो कितनी प्रकार से उन्होंने अपनी कृपा को प्रकट किया इसकी कोई सीमा नहीं है। योगमाया और अयोगमाया के वर्णन से यह बात समझ में आयी। इसके अतिरिक्त ‘अयोगंमायामुपाश्रितः’ इसकी व्याख्या और भी होती है।

अयः अर्थात ‘अयोगत गच्छतीति अयोगा’ इस प्रकार से व्याख्या करने पर मालूम होता है अयः अर्थात लौह-लोहे के समान जिसकी गति है उसको कहते हैं अयोगा। अयोगात गच्छतीति-लोहे के समान जिसकी गति है भगवान की जो यह माया, कृपा है यह अयोगा है। जैसे अयस्कान्तमणि अपनी शक्ति से लोहे को खींचकर अपने में संयुक्त कर लेता है इसी प्रकार प्रेमी भक्तों को देखकर भगवान की कृपा उनकी ओर दौड़ पड़ती है खींचने के लिये। कहते हैं कि लौह जिस प्रकार से चुम्बक की ओर स्वभावतः ही दौड़ता है-लोहे को दौड़ाना पड़ता नहीं। चुम्बक सामने आ गया तो लोहा दौड़ गया-स्वभावतः। इसी प्रकार से भगवान की कृपा भी प्रेमी भक्तों के सामने दौड़ती है मानों भगवान की कृपा तो लोहा है और भक्तों का प्रेम चुम्बक है। तो जैसे चुम्बक को लोहे का आवाहन नहीं करना पड़ता। चुम्बक कहता नहीं लोहे को कि तुम हमारी तरफ आओ। चुम्बक ख़ाली लोहे के सामने हो जाता है।

इसी प्रकार से भगवान की कृपा भी स्वतः प्रवृत्त होकर अपने आप से चलकर प्रेमी भक्त की ओर दौड़ती है। लेकिन एक बात यह हम लौह-चुम्बक के दृष्टान्त में देखते हैं कि यदि लोहा परिमाण में बहुत ज्यादा हो-हजारों मन हो और चुम्बक तोला भर हो तो वह चुम्बक खींचने वाला होने पर इतने लोहे को नहीं खींच सकता। इसी प्रकार से भगवान की कृपा का परिमाण भी इतना ज्यादा है यह लोहा भी इतना भारी है-भगवान की कृपारूपी लोहा इतना अधिक है-कृपा की शोभा अनन्तता में ही है-भगवान की कृपा अगर इतनी-सी हो तो वह भगवान की कृपा नहीं हुई। भगवान हों तब तो उनकी कृपा सीमित हो जाय परन्तु जिस प्रकार से भगवान अनन्त हैं उसी प्रकार से भगवान की कृपा भी अनन्त है।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

रास पंचाध्यायी -हनुमान प्रसाद पोद्दार
क्रमांक पाठ का नाम पृष्ठ संख्या

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः