रास पंचाध्यायी -हनुमान प्रसाद पोद्दार पृ. 100

श्रीरासपंचाध्यायी -हनुमान प्रसाद पोद्दार

रासलीला-चिन्तन-2

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स्वर्गाश्रम (ऋषिकेश) में दिये गये प्रवचन


श्रीभगवान अपनी माया से स्वयं मुग्ध होकर ऐसी लीला करते हैं। यह बात सुनकर जो बहुत अधिक बुद्धिवादी लोग हैं वे शायद इसको ठीक कल्पना समझें। वह कहेंगे कि भगवान अपनी माया से आप मुग्ध हो जाय यह कोई काम की बात नहीं, यह तो एक नयी कल्पना है लेकिन यह कल्पना नहीं है। मारकण्डेय पुराण में, देवीभागवत में आता है कि महाप्रलय के समय शेषशायी नारायण योगमाया से अभिभूत होकर शेषशय्या पर सो गये-योगनिद्रा से अभिभूत हो करके। योगनिद्रा भगवान को अचेतन करके निद्रा में रखें। यह क्या कोई दूसरी नींद है, माया की नींद है? यह भगवान की शक्ति ही है-

विश्वेश्वरीं जगद्धात्रीं स्थितिसंहारकारिणीम्।
निद्रां भगवतीं विष्णोरतुलां तेजसः प्रभुः।।[1]

यह विश्वेश्वरी जगज्जननी संहारकारिणी भगवती विष्णु माया का स्तवन करते हुए ब्रह्मा जी ने ऐसा कहा। शेषशायी नारायण जिस योग निद्रा से निवृत्त हुए वह उन्हीं की एक शक्ति थी। यह मनना पड़ेगा। महाप्रलय के समय अपनी शक्ति-योगनिद्रा से जो स्वयं निद्रित हो सकते है वे अपनी रासलीला में अपनी शक्ति से अपने आपको मुग्ध कर लें इसमें कौन ऐसी बड़ी बात। तुम कहते हो कि भगवान ऐसा नहीं कर सकते तो भगवान की शक्ति सीमित कर दी। बहिर्मुख जीवों को अविद्या संसारबन्धन से बद्ध करती है और योगनिद्रा से शेषशायी नारायण को निद्रित रखती है। इसका अर्थ यह नहीं कि वह शक्ति भगवान से बड़ी है। भई! किसी स्वामी ने दासी से कहा कि देखो! हम सोते हैं जरा और तुम हवा करो जिससे हमें नींद आ जाय और अमुक समय हमें जगा देना। तो नींद दिलाने वाली तो उनकी दासी है कि उनकी मालकिन है। तो यह भगवान की शक्ति। यही त्रिविकार्य सम्पादन करने में विद्या-अविद्या और योगनिन्द्रा, विमुखमोहिनी और भक्तमोहिनी, उन्मुखमोहिनी और आत्ममोहिनी की भूमिका है। यह माया है। भगवान में विद्या सर्वत्र है। आदमी अविद्या से भी विमोहित होता है। योगनिद्रा उनकी अपनी है जो वह काम करती है। तो मारकण्डेय पुराण में है कि चित्स्वरूप श्रीभगवान की ऐश्वर्यादि षडविध महाशक्ति में कोई दूसरा अद्भुत कार्य संघटन हो जाय तभी वह अघटन घटना होती है तो भगवान जो चित्स्वरूप हैं उनको अचेतन कौन करे? उनको जो अचेतन कर सकती है वह भगवान की अपनी लीला है, अपनी ही माया है। दूसरी कोई नहीं। इसलिये अचिन्त्य महाशक्तियों को मानना पड़ता है। यही अचिन्त्य महाशक्ति ही योगमाया और उसी का यह सारा-का-सारा काम है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. मारकण्डेय पुराण

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