रासेश्वरी राधिकाके एकाधिपत्यमें सुन्दर साज।
शुचि सौन्दर्य मधुर रसमय असमोर्ध्व अमित बिजली-घनराज॥
एक-एक के मध्य मनोहर एक-एक, सब मिल, दे ताल।
रास-रसिक रस-नृत्य-निरत, शुचि बाज रहे मृदु वाद्य रसाल॥
जो इस मधुर शुद्ध रसका किंचित् भी कर पाता आस्वाद।
दृश्य जगत्का मिटता सारा शोक-मोह-भय-लोभ-विषाद॥
होता काम रोगका उसके जीवनमें सर्वथा अभाव।
राधा-माधव-चरण-रेणु-कण-करुणासे वह पाता ’भाव’॥
’भाव’ प्राप्त हो वह हो पाता राधारानी का अनुचर।
सभी दोष मिट, होती उसमें प्रकट गुणावलि शुचि सत्त्वर॥
पाता वह फिर नित-निकुञ्ज में अति दुर्लभ सेवा-अधिकार।
जिसके लिये सदा ललचाते ऋषि-मुनि-तापस छोड़ विकार॥