विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीरासलीला का अन्तरंग-2राधा कृष्ण हो जाती है और कृष्ण गोपी हो जाते हैं; इसका वर्णन है श्रीमद्भागवत में- कोई एक गोपी हो गयी कृष्ण और दूसरी बन गयी पूतना। दूसरी बोली और देखो-देखो, मैं कृष्ण, मेरी गति देखो, कैसी सुन्दर चाल से मैं चलती हूँ। कृष्णोऽहं पश्यतगतिं ललितामिति तन्मताः गोपी कृष्ण-कृष्ण-कृष्ण करती कृष्ण हो गयी, राधा आपहि श्याम भई। ब्रह्म चैतन्य में द्रष्टा और दृश्य का भेद नहीं है। जैसे ब्रह्मसत्ता में कर्ता और कर्म का भेद नहीं है, ऐसे आनन्दसत्ता में भोक्ता और भोग्य का भेद नहीं है। प्रेम में राधा और कृष्ण का भेद नहीं है। ऐसा अखण्ड प्रेमरस से परिपूर्ण यह श्रीकृष्ण और राधा का प्रेम जो है, वह प्रेम मालिक है। और राधा-कृष्ण दोनों उसके स्वरूप खिलौना हैं। वह प्रेम राधा को कृष्ण बनाकर खेलता है, कृष्ण को राधा बनाकर खेलता है; वह दोनों को बनाता है, बिगाड़ता है, प्रेम मालिक है। सारी सृष्टि को चलाने वाले कृष्ण हैं और कृष्ण को चलाने वाला है प्रेम। प्रेम कृष्ण का सेवक नहीं है, कृष्ण का मालिक है। व्रजवासियों के प्रेम के निरूपण में एक विशेषता है। क्या? वे कहते हैं- प्रेम समुद्र है, और राधा और कृष्ण उसकी दो तरंगें है। राधा और कृष्ण विवर्त हैं, और विवर्ती है प्रेम, आनन्द-ब्रह्म। राधा-कृष्ण में भोक्ता-भोग्य का भेद नहीं है असल में तो प्रेम ही प्रेम है, रस ही रस है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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